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युवा दिवस पर मानव श्रृंखला और संगोष्ठी का आयोजन

The Academics News, ललितपुर. 
राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद नैक द्वारा मूल्यांकित संस्थान पहलवान गुरुदीन स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय पनारी ललितपुर में आज दिनांक 12 जनवरी 2025 को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती राष्ट्रीय युवा दिवस के उपलक्ष्य में रेड रिबन क्लब द्वारा मानव श्रृंखला एवं संगोष्ठी का आयोजन किया गया। 
कार्यक्रम का शुभारंभ महाविद्यालय की प्रबंधक श्रीमती सितारा देवी,अध्यक्ष कंचन लता यादव, पहलवान गुरुदीन ग्रुप ऑफ कॉलेज के डायरेक्टर सौरव यादव, प्रबंध निर्देशिका डॉक्टर पूजा यादव, प्राचार्य डॉक्टर सूफिया, एनसीसी कैप्टन डॉक्टर वंदना याज्ञिक, एनएसएस द्वितीय इकाई कार्यक्रम अधिकारी असि० प्रो० साधना नागल एवं समस्त स्टाफ द्वारा मां सरस्वती एवं स्वामी विवेकानंद जी के समक्ष दीप प्रज्जवलित एवं पुष्पार्पित कर किया गया।
महाविद्यालय की प्रबंधक श्रीमती सितारा देवी जी ने अपने उद्बोधन में कहां कि भारत एक युवा देश है, और आज राष्ट्रीय युवा दिवस है। हर वर्ष 12 जनवरी को देश में राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। इस दिन को स्वामी विवेकानंद की जयंती के रूप में मनाते हैं। इसके साथ ही स्वामी विवेकानंद के जीवन और शिक्षाओं को युवाओं के बीच पहुंचाने का भी काम किया जाता है, जिससे उनके अंदर देशभक्ति की भावना को जगाया जा सके।
अध्यक्ष कंचन लता यादव जी ने छात्राओं को बताया कि स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता में 12 जनवरी 1863 को हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। इनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे। नरेंद्र बाल्यावस्था से प्रतिभा के धनी थे। उन पर मां सरस्वती की कृपा थी। स्वामी जी को ईश्वर से बेहद ही लगाव था। 16 वर्ष की आयु में 1869 में स्वामी जी ने कलकत्ता विश्व विद्यालय के एंट्रेंस एग्जाम में बैठे और इस एग्जाम में उन्हें सफलता मिली। इसके बाद इसी विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इस दौरन उनकी भेंट परमहंस महाराज जी से हुई। इसके बाद स्वामी जी ब्रह्म समाज से जुड़े।
प्रबंध निर्देशिका डॉक्टर पूजा यादव जी ने कहा कि सन् 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित धर्म सम्मेलन में स्वामी जी ने भारत का प्रतिनिधित्व किया था। इस सम्मेलन में स्वामी जी के भाषण की पूरी दुनिया में प्रशंसा की गई। इससे भारत देश को एक नई पहचान मिली। 4 जुलाई 1902 को बेलूर के रामकृष्ण मठ में ध्यानावस्था में महासमाधि धारण कर स्वामी जी पंचतत्व में विलीन हो गए।
डायरेक्टर डॉक्टर सौरव यादव जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि 
वह ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे बालक का सर्वांगीण विकास हो सके। बालक की शिक्षा का उद्देश्य उनको आत्मनिर्भर बनाकर अपने पैरों पर खड़ा करना है।
महाविद्यालय की प्राचार्य डॉक्टर सूफिया जी ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द ने प्रचलित शिक्षा को 'निषेधात्मक शिक्षा' की संज्ञा देते हुए कहा है कि आप उस व्यक्ति को शिक्षित मानते हैं जिसने कुछ परीक्षाएं उत्तीर्ण कर ली हों तथा जो अच्छे भाषण दे सकता हो, पर वास्तविकता यह है कि जो शिक्षा जनसाधारण को जीवन संघर्ष के लिए तैयार नहीं करती, जो चरित्र निर्माण नहीं करती, जो समाज सेवा की भावना विकसित नहीं करती तथा जो शेर जैसा साहस पैदा नहीं कर सकती, ऐसी शिक्षा से क्या लाभ?
एनसीसी कैप्टन डॉक्टर वंदना याज्ञिक ने बताया कि स्वामी विवेकानंद जी सैद्धान्तिक शिक्षा के पक्ष में नहीं थे, वे व्यावहारिक शिक्षा को व्यक्ति के लिए उपयोगी मानते थे। व्यक्ति की शिक्षा ही उसे भविष्य के लिए तैयार करती है, इसलिए शिक्षा में उन तत्वों का होना आवश्यक है, जो उसके भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हो।
एनएसएस द्वितीय इकाई कार्यक्रम अधिकारी असि० प्रो० साधना नागल ने बताया कि विवेकानंद कहते हैं, "शिक्षा का मतलब यह नहीं है कि तुम्हारे दिमाग़ में ऐसी बहुत-सी बातें इस तरह ठूँस दी जायँ, जो आपस में, लड़ने लगें और तुम्हारा दिमाग़ उन्हें जीवन भर में हज़म न कर सके। जिस शिक्षा से हम अपना जीवन-निर्माण कर सकें, मनुष्य बन सकें, चरित्र-गठन कर सकें और विचारों का सामंजस्य कर सकें, ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है। 
इस अवसर पर एनसीसी कैप्टन डॉ वंदना याज्ञिक,असि.प्रो. प्रकाश खरे, असि. प्रो. प्रीति शुक्ला, एनएसएस द्वितीय इकाई कार्यक्रम अधिकारी असि. प्रो. साधना नागल, असि. प्रो.रंजना श्रीवास्तव बी.एड. विभागाध्यक्ष असि.प्रो. रत्ना याज्ञिक, असि. प्रो. सुषमा पटेल, असि. प्रो. आरती बुंदेला, श्रीमती रजनी यादव,श्री राघवेंद्र सिंह, श्री जगत झा, श्री मुस्ताक खान श्रीमती गेंदा, मालती राज, नेहा अहिरवार, श्रीमती विमला, श्री राम सहाय, श्री परमानंद एवं समस्त छात्राएं मौजूद रहीं।
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